महाराणा कुम्भा ( Maharana Kumbha )
इनके पिता का नाम महाराणा मोकल था। महाराणा मोकल की हत्या के पश्चात राणा कुम्भा मेवाड़ के शासक बने। महाराणा कुम्भा का काल ‘कला एवं वास्तुकला का स्वर्णयुग‘ कहा जाता है।
महाराणा कुम्भा जैन आचार्य ‘हीरानन्द‘ को अपना गुरू मानते थे। महाराणा कुम्भा ने आचार्य सोमदेव को ‘कविराज‘ की उपाधि प्रदान की।महाराणा कुम्भा की माता का नाम सौभाग्य देवी था। रमाबाई महाराणा कुम्भा की पुत्री, संगीतशास्त्र की ज्ञाता थी। इनके लिये ‘वागीश्वरी‘ उपनाम का प्रयोग हुआ।
ईश्वर जावर रमाबाई द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर की शिल्पी थी। महाराणा कुम्भा संगीत की तीन विद्यायाओं ‘गीत-वाद्य-नृत्य‘ में पारदर्शी विद्वान थे।
महाराणा कुम्भा ने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया।
35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं।
कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है।
बंसतपुर को उन्होंने पुन: बसाया और श्री एकलिंग के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया।
मालवा के सुल्तान महमूद पर विजय के स्मारक स्वरूप चित्तौड़ का विख्यात कीर्तिस्तंभ बनवाया जो संसार की अद्वितीय कृतियों में एक है। इसके एक-एक पत्थर पर उनके शिल्पानुराग, वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है।
वे विद्यानुरागी थे, संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडीशतक एवं गीतगोविंद आदि ग्रंथों की व्याख्या की।
वे नाट्यशास्त्र के ज्ञाता और वीणावादन में भी कुशल थे। कीर्तिस्तंभों की रचना पर उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडन आदि सूत्रधारों से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखवाए
‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है
Maharana Kumbha important facts-
- रणमल के प्रति राणा कुंभा का सशकित होने का प्रमुख कारण था➡ रणमल ने उच्च एवं उत्तरदाई पदों पर अपने राठौड़ों को नियुक्त कर दिया था
- राणा कुंभा द्वारा बड़ी सादड़ी पर अधिकार करने का सबसे बड़ा दुष्परिणाम था➡ भ्राता खेमकरण मालवा के शासक महमूद की शरण में चला गया
- राणा कुंभा ने सोजत और मंडोर जोधा को लौटा दिए क्योंकि➡ राणा कुंभा ने हंसा बाई के कहने से मंडोर वह सोजत लौट आए थे
- राणा कुंभा द्वारा मालवा पर आक्रमण करने का प्रमुख कारण था➡ मालवा के शासक महमूद खिलजी ने राणा के विरोधी खेमकरण को अपनी शरण दे दी थी
- मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वारा गागरोन की विजय को क्यों महत्वपूर्ण समझा गया➡गागरोन मेवाड़ की सीमा पर एक प्रहरी स्वरूप स्थान था
- महाराणा कुंभा ने अपने शासनकाल में 32 दुर्ग बनवाए परंतु उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है➡कुंभलगढ़ का दुर्ग
- राणा कुंभा के शासन में अनेक जैन तथा वैष्णव देवालय निर्मित किए गए उनमें जैन मंदिर यह ह➡रणकपुर का मंदिर
- राणा कुंभा को संगीत कला का अच्छा ज्ञान था इसका प्रमाण है➡रसिक प्रिया
- राणा कुंभा मेवाड़ के राणा बने थे➡1433
- कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति के रचयिता थे➡अभी कवि
हासिक राजस्थानी साहित्य ( Historical Rajasthani literature )
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